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अब मुफ्त की रेवडिय़ों के वादे से बचेगी भाजपा

भाजपा अब चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त की घोषणाओं (फ्रीबीज) पर ब्रेक लगाने की तैयारी में है। पार्टी ने फ्रीबीज की जगह वैकल्पिक मॉडल तैयार किया है। इसमें खाते में सीधे कैश ट्रांसफर या अन्य छूट (नॉन परफॉर्मिंग एक्सपेंडिचर) की जगह कामकाज को बढ़ाने और ऐसे मदों के लिए आर्थिक मदद की घोषणा होगी, जिससे राज्य की जीडीपी को गति मिले। नए मॉडल की शुरुआत 2026 में होने वाले असम विधानसभा चुनाव से होगी। भाजपा यह व्यवस्था उन्हीं राज्यों में लागू करेगी, जहां पार्टी खुद सरकार में है या मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है या जहां अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। जहां पहले से फ्रीबीज की घोषणा हो चुकी है या पार्टी ने जिसका वादा किया है, वह जारी रहेगा, पर अगले चुनाव में वहां भी नया मॉडल लागू होगा।

यानी 2028 के बाद भाजपा शासित सभी राज्यों में यह व्यवस्था होगी। भाजपा की कई मेनिफेस्टो कमेटी से लंबे समय से जुड़े रहने वाले एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि दिल्ली चुनाव के दौरान ही शीर्ष नेतृत्व ने अगले चुनावों में फ्रीबीज का वैकल्पिक मॉडल अपनाने के लिए रणनीति बनाने का विचार रखा था।

सबसिडी पर भी बड़ा खर्च

राज्य सरकारों को कई तरह की सबसिडी पर भी हर महीने मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। इनमें खाद्य सबसिडी (जैसे चावल और गेहूं को दो-तीन रुपए प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराना), कृषि सबसिडी (किसानों को बिजली, उर्वरक और बीज), शिक्षा और स्वास्थ्य सबसिडी, परिवहन सबसिडी, ऊर्जा सबसिडी आदि भी देनी होती है। राज्यों को करों के हिस्से के रूप में मिला अधिकांश पैसा इन्हीं सबसिडी में खप जाता है। फ्रीबीज के चक्कर में राज्यों को अतिरिक्त संसाधनों का जुगाड़ करना पड़ता है, लेकिन सभी के लिए यह संभव नहीं होता। ऐसे में राज्यों को फ्रीबीज के चक्कर में भारी चपत लगती है और उनकी आर्थिकी पर ये फ्रीबीज भारत पड़ती हैं।

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